प्राचीन भारतीय वास्तुविज्ञों ने घर बनाते समय पेड़-पौधे तथा बगीचा लगाने के लिए भी स्पष्ट निर्देश दिए हैं। इनके अनुसार कुछ विशेष पेड़-पौधों का घर में होना अत्यन्त शुभ माना जाता है, साथ ही कुछ वृक्षों को घर में या घर के निकट लगाने के लिए स्पष्ट ही मना किया गया है। 13वीं सदी में रचे गए ग्रंथ शारंगधर पद्धति में इनका उल्लेख निम्न प्रकार हैं-
वास्तुविज्ञों के अनुसार घर में बगीचा उत्तर अथवा पश्चिम दिशा में ही लगाना चाहिए। ऐसा करने वाले परिवार को कभी कोई दुख नहीं उठाना पड़ता वरन वह परिवार सदैव फलता-फूलता रहता है।
घर का बगीचा कभी भी नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) तथा आग्नेय (पूर्व-दक्षिण) दिशा में नहीं होना चाहिए। यदि इन दिशाओं में बगीचा लगाया जाता है तो उस घर में रहने वालों को विनाश का दुख का सामना करना पड़ता है।
जो मनुष्य अपने घर में तुलसी का पौधा लगाता है तथा पूर्ण मनोयोग से इनका पालन-पोषण करता है वह व्यक्ति हजारों वर्ष तक बैकुंठ लोक में रहने का अधिकारी होता है।
जिस घर में भगवान शंकर का अतिप्रिय बिल्व का वृक्ष होता है उसके घर में साक्षात लक्ष्मी विराजमान रहती है तथा वहां रहने वालों पर धन-सौभाग्य की वर्षा करती रहती है।
जो व्यक्ति अपने घर में पीपल का पौधा लगाता है वह मृत्यु के उपरांत वैकुंठ धाम में वास करता है। इसी प्रकार जो मनुष्य अपने घर में आंवले का पौधा लगाता है उसे कई यज्ञों का पुण्य मिलता है तथा उस पर सदा देवताओं की कृपा बनी रहती है।
घर में केला, चंपा, चमेली, कदम्बर तथा पटल के वृक्ष लगाना शुभ माना गया है। इनके अलावा घर में दूब लगाना भी उत्तम बताया गया है।
जो मनुष्य सुख-शांति तथा समृद्धि की कामना करता हो उसे अपने घर के बगीचे में कभी भी कदली, दाड़िम, अरंड, पलाश, कचनार, अर्जुन तथा करंज के पेड़ नहीं लगाने चाहिए। इनके अतिरिक्त दुग्ध वाले पेड़ों को भी लगाने से मना किया गया है।
घर में अथवा घर के पास कभी भी कोई भी कांटेदार पौधा या वृक्ष नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करना स्वयं दुर्भाग्य को बुलावा देने जैसा है। यदि ये वृक्ष स्वयं ही उग आएं तो भी इन्हें उखाड़कर फेंक देना चाहिए, अन्यथा कोई बड़ा नुकसान हो सकता है।